अपामार्ग
अपामार्ग एक औषधीय वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम 'अचिरांथिस अस्पेरा' (ACHYRANTHES ASPERA) है। हिन्दी में इसे 'चिरचिटा', 'लटजीरा', 'चिरचिरा ' आदि नामों से जाना जाता है।विशेषता
अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है। आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं। सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग
युक्त होते हैं। इसके अलावा फल चपटे होते हैं, जबकि लाल अपामार्ग का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।
इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद
अपामार्ग श्रेष्ठ माना जाता है इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है- पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग
एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं। इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं।
इसकी दो प्रजातियां होती हैं सफेद और लाल। तंत्र और आयुर्वेद दोनों में ही इसकी दोनों की प्रजातियों का उपयोग होता है।
अपामार्ग एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है। वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में परिपक्व होकर फलों के साथ ही क्षुप भी शुष्क हो जाता है। इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं।झलालड़
संग्रह
शरद ऋतु के अंत में पंचांग (मूल, तना, पत्र, पुष्प, बीज) का संग्रह करके छाया में सुखाकर बन्द पात्रों में रखते हैं। बीज तथा मूल के पौधे के सूखने पर संग्रहीत करते हैं। इन्हें एक वर्ष तक प्रयुक्त किया जा सकता है।अपामार्ग के पोषक तत्व –
जैसा की हम जानते हैं कि यह पौधा खरपतवार होने के साथ ही एक विशेष जड़ी बूटी माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें बहुत से औषधीय गुण होते हैं जो हमारी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। अपामार्ग में पाए जाने वाले पोषक तत्वों मेंट्राइटरपेनोइड सैपोनिन (triterpenoid saponins) होते हैं जिनमें ऑलिओलिक एसिड एग्लीकोन के रूप में होता है। इसके अन्य घटकों में
एंचेंटाइन, बीटाइन, पेंटेट्रियाकॉन्टेन, 6-पेंटेट्रियाकोंटोनोन, हेक्साट्रियाकॉन्टेन और ट्रिट्रीकॉन्टेन (hexatriacontane, and tritriacontane) भी मौजूद हैं।
औषधीय गुण
इसे वज्र दन्ती भी कहते हैं। इसकी जड़ से दातून करने से दांतों की जड़ें मजबूत और दाँत मोती की तरह चमकते हैं।बिच्छू का विष
बिच्छू के काटने पर एक कटोरी में ५० ग्राम लाही के तेल को उबालो और उस उबलते हुए तेल में लटजीरा के पौधे को उखाड़ कर और उसका रस निचोड़ कर डालो इससे जो वाष्प निकले उसमें बिच्छूसे कटे हुए भाग की सिकाई करो। शीघ्र लाभ होगा।
गुर्दे की पथरी (Kidney stone)
लगभग 1 से 3 ग्राम चिरचिटा के पंचांग का क्षार बकरी के दूध के साथ दिन में 2 बार लेते हैं। इससे गुर्दे की पथरी गलकर नष्ट हो जाती है।
5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम सुबह- शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खायें तो गुर्दे की
पथरी में ज्यादा लाभ होता है।
2. खूनी बवासीर (Bloody piles)
चिरचिटा की 25 ग्राम जड़ों को चावल के पानी में पीसकर बकरी के दूध के साथ दिन में 3 बार लेने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
3. कुष्ठ (Leprosy)
चिरचिटा के पंचांग का काढ़ा लगभग 14 से 28 मिलीलीटर दिन में 3 बार सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
4. हैजा(Cholera)
चिरचिटा की जड़ों को 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में बारीक पीसकर दिन में 3 बार देने से हैजा में लाभ
मिलता है।
5. शारीरिक दर्द (Physical pain)
चिरचिटा की लगभग 1 से 3 ग्राम पंचांग का क्षार नींबू के रस में या शहद के साथ दिन में 3 बार देने से
शारीरिक दर्द में लाभ मिलता है।
6. तृतीयक बुखार (Tertiary fever)
इसकी ढाई पत्तियों को गुड़ में मिलाकर दो दिन तक सेवन करने से पुराना ज्वर उतर जाता है।
7. खांसी (cough)
चिरचिटा को जलाकर, छानकर उसमें उसके बराबर वजन की चीनी मिलाकर 1 चुटकी दवा मां के दूध के साथ रोगी को देने से खांसी बंद हो जाती है।
8. आंवयुक्त दस्त (Dysentery diarrhea)
चिरचिटा के कोमल के पत्तों को मिश्री के साथ मिलाकर अच्छी तरह पीसकर मक्खन के साथ धीमी आग पर रखे जब यह गाढ़ा हो जाये तब इसको खाने से ऑवयुक्त दस्त में लाभ मिलता है।
9. बवासीर (Hemorrhoids)
250 ग्राम चिरचिड़ा का रस, 50 ग्राम लहसुन का रस, 50 ग्राम प्याज का रस और 125 ग्राम सरसों का तेल
इन सबको मिलाकर आग पर पकायें। पके हुए रस में 6 ग्राम मैनसिल को पीसकर डालें और 20 ग्राम मोम डालकर महीन मलहम (पेस्ट) बनायें। इस मलहम को
मस्सों पर लगाकर पान या धतूरे का पत्ता ऊपर से चिपकाने से बवासीर के मस्से सूखकर ठीक हो जाते हैं।
चिरचिटा के पत्तों के रस में 5-6 काली मिर्च पीसकर पानी के साथ पीने से बवासीर में आराम मिलता है।
10. पक्षाघात-लकवा-फालिस- परालिसिस (Stroke-paralysis-Falis- paralysis)
एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।
11. जलोदर (Dropsy)
चिरचिटा का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की
मात्रा में लेकर पीने से जलोदर (पेट में पानी भरना) की सूजन कम होकर समाप्त हो जाती है।
12. शीतपित्त (Urticaria)
अपामार्ग (चिरचिटा) के पत्तों के रस में कपूर और चन्दन का तेल मिलाकर शरीर पर मालिश करने से शीतपित्त की खुजली और जलन खत्म होती है।
13. घाव -व्रण( wound)
फोड़े की सूजन व दर्द कम करने के लिए चिरचिटा, सज्जीखार अथवा जवाखार का लेप बनाकर फोड़े पर
लगाने से फोड़ा फूट जाता है, जिससे दर्द व जलन में रोगी को आराम मिलता है।
14 . उपदंश -सिफलिस( Syphilis)
चिरचिटा की धूनी देने से उपदंश के घाव मिट जाते हैं। 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ के रस को सफेद जीरे के 8 ग्राम चूर्ण के साथ मिलाकर पीने से उपदंश में बहुत लाभ होता है। इसके साथ रोगी को मक्खन भी साथ
में खिलाना चाहिए।
15. नाखून की खुजली (Nail itch)
चिरचिटा के पत्तों को पीसकर रोजाना 2 से 3 बार लेप करने से नाखूनों की खुजली दूर हो जाती है।
16. नासूर (Ulcer)
नासूर दूर करने के लिए चिरचिटे की पत्तियों को पानी में पीसकर रूई में लगाकर नासूर में भर दें। इससे नासूर मिट जाता है।
17. शरीर में सूजन (Inflammation in the
body)
लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में चिरचिटा खार, सज्जी खार और जवाखार को लेकर पानी में पीसकर सूजन वाली गांठ पर लेप की तरह सेलगाने से सूजन दूर हो जाती है।
18. बच्चों के रोगों में लाभकारी
( Beneficial Children's Diseases)
अगर बच्चे की आंख में माता (दाने) निकल आये तो दूध में मूल को घिसकर आंख में काजल की तरह लगाएं।
19. बिच्छू का जहर(Poison Scorpion)
जिस बच्चे या औरत-आदमी के बिच्छू ने डंक मारा हो,उसे चिरचिटे की जड़ का स्पर्श करायें अथवा 2 बार
दिखायें। इससे जहर उतर जाता है।
अपामार्ग,herbal plants
Reviewed by vikram beer singh
on
April 11, 2019
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